MANAGEMENT OF FIRST STAGE OF LABOR IN HINDI
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प्रसव के प्रथम चरण का प्रबंधन (Management of First Stage of Labor)
प्रसव का प्रबंधन प्रसव की शुरुआत से पहले ही प्रारंभ हो जाता है। प्रसव की घटनाएँ स्त्री और उसके परिवार पर गहरा मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सामाजिक प्रभाव डालती हैं। महिला तनाव, शारीरिक दर्द और खतरों के भय का अनुभव करती है। देखभाल करने वाले को उसके प्रति संवेदनशील, सम्मानजनक और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।
प्रसव की तैयारी
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वल्वा के बाल साफ (शेव) किए जाते हैं।
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वल्वा और पेरिनियम को पहले साबुन और पानी से तथा फिर एंटीसेप्टिक घोल से अच्छी तरह धोया जाता है।
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महिला को स्नान कराकर साफ कपड़े पहनाए जाते हैं और उसे चलने-फिरने दिया जाता है।
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पूरे प्रसव के दौरान निरंतर प्रोत्साहन और भावनात्मक सहयोग दिया जाता है।
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एक सुसज्जित लेबर ट्रॉली तैयार रखी जाती है।
योनि परीक्षण (Vaginal Examination)
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जाँच रोगी को डॉर्सल पोजीशन में लिटाकर की जाती है।
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जाँच का उद्देश्य महिला को समझाया जाता है।
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हाथ और अग्रबाहु को साबुन और बहते पानी से धोया जाता है और नाखूनों को ब्रश से साफ किया जाता है।
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स्टेराइल ग्लव्स पहने जाते हैं।
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वल्वा को आगे से पीछे की ओर एंटीसेप्टिक घोल से साफ किया जाता है।
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दाहिने हाथ की मध्य और तर्जनी उँगली पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाकर बाएँ हाथ से लेबिया अलग कर योनि में डाली जाती हैं।
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पूर्ण जाँच के बाद ही उँगलियाँ बाहर निकाली जाती हैं।
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संक्रमण के खतरे से बचने के लिए योनि परीक्षण न्यूनतम रखा जाता है।
पार्टोग्राफ में दर्ज की जाने वाली बातें
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गर्भाशय ग्रीवा का फैलाव (Cervical dilatation): सेंटीमीटर में मापा जाता है।
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Alert line: 4 सेमी फैलाव से शुरू होकर 10 सेमी तक 1 सेमी/घंटा की दर से।
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Action line: Alert line से 4 घंटे दाहिनी ओर समानांतर खींची जाती है।
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Effacement: ग्रीवा की पतलापन की स्थिति।
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झिल्ली की स्थिति: साबुत/फटी हुई और यदि फटी तो पानी का रंग (साफ, मिकोनियम मिश्रित, रक्त मिश्रित)।
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प्रस्तुत भाग व उसकी स्थिति।
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Head Station: इस्चियल स्पाइन के संबंध में भ्रूण के सिर की स्थिति।
अन्य प्रबंधन
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यदि झिल्ली साबुत है तो महिला को चलने-फिरने की अनुमति होती है।
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उसे डॉर्सल सुपाइन पोजीशन से बचना चाहिए (Aortocaval compression रोकने हेतु)।
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यदि मलाशय भरा हुआ हो तो साबुन-पानी का एनीमा या ग्लिसरीन सपोजिटरी दिया जा सकता है।
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सक्रिय प्रसव में भोजन न दिया जाए। प्रारंभिक अवस्था में पानी, बर्फ के टुकड़े या जूस दिया जा सकता है।
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महिला को स्वयं मूत्र त्याग के लिए प्रोत्साहित किया जाए। यदि संभव न हो तो बेड पैन दिया जाए।
मातृ निगरानी
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नाड़ी (Pulse): हर 30 मिनट पर जाँचकर पार्टोग्राफ में डॉट (.) से चिन्हित।
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रक्तचाप (BP): हर 1 घंटे पर तीर (→) से दर्ज।
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तापमान: हर 2 घंटे पर जाँच।
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मूत्र: मात्रा, प्रोटीन और एसीटोन के लिए जाँच।
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दी गई दवाएँ: जैसे ऑक्सीटोसिन आदि, पार्टोग्राफ में लिखी जाएँ।
पेट का परीक्षण (Abdominal palpation)
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गर्भाशय संकुचन की आवृत्ति, तीव्रता और अवधि नोट की जाती है।
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10 मिनट में संकुचनों की संख्या और प्रत्येक की अवधि (सेकंड में) दर्ज की जाती है।
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पेल्विक ग्रिप: भ्रूण के सिर के ध्रुव (सिंसिपुट और ऑक्सिपुट) का धीरे-धीरे गायब होना देखा जाता है।
भ्रूण की निगरानी
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भ्रूण की हृदय दर (FHR), उसकी लय और तीव्रता हर 30 मिनट में नोट की जाती है।
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द्वितीय चरण में या झिल्ली फटने के बाद हर 15 मिनट पर जाँच की जाती है।
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यह जाँच संकुचन के तुरंत बाद 60 सेकंड तक की जाती है।
मानसिक सहयोग
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पूरी अवधि में महिला को लगातार मनोवैज्ञानिक समर्थन दिया जाए।
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