MANAGEMENT OF SECOND STAGE OF LABOR IN HINDI
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प्रसव के द्वितीय चरण का प्रबंधन (Management of Second Stage of Labor)
प्रथम चरण से द्वितीय चरण में परिवर्तन की पहचान
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गर्भाशय संकुचनों की तीव्रता बढ़ना
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Bearing-down efforts (धक्का लगाने की इच्छा)
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प्रस्तुत भाग के नीचे आने पर शौच जैसा जोर लगाने की प्रवृत्ति
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गर्भाशय ग्रीवा का पूर्ण प्रसार (Vaginal Examination द्वारा)
सामान्य देखभाल
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रोगी को बिस्तर पर रखा जाए।
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निरंतर निगरानी आवश्यक है और भ्रूण की हृदयगति (FHR) हर 5 मिनट पर दर्ज की जाए।
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योनि परीक्षण केवल प्रारंभ में किया जाए, ताकि द्वितीय चरण की पुष्टि और किसी भी आकस्मिक नाल (cord) के बाहर आने का पता लगाया जा सके।
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सिर की स्थिति और Station की पुनः जाँच की जाती है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि सिर धीरे-धीरे नीचे आ रहा है।
प्रसव के समय उचित स्थिति (Position)
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प्रसव के समय महिला की स्थिति लैटरल, स्क्वाटिंग या आंशिक बैठने (45°) की हो सकती है।
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Dorsal position with 15° left lateral tilt को अधिक पसंद किया जाता है क्योंकि इससे aortocaval compression नहीं होता और धक्का लगाने में सुविधा मिलती है।
स्वच्छता और तैयारी
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प्रसवकर्ता (accoucheur) को अच्छे से हाथ धोकर स्टेराइल गाउन, मास्क और ग्लव्स पहनने चाहिए।
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रोगी की बाह्य जननांग और जांघों के अंदरूनी हिस्से को एंटीसेप्टिक घोल (Savlon/Dettol) से साफ करना चाहिए।
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रोगी के नितंबों के नीचे और पेट पर स्टेराइल चादर बिछाई जाती है।
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स्टेरिलाइज्ड लेगिंग्स का उपयोग किया जाता है।
Aseptic Technique – 6 Cs:
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Clean hands (साफ हाथ)
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Clean mother (साफ माँ)
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Clean delivery surface (साफ प्रसव सतह)
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Clean cutter (साफ काटने का औजार)
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Clean cord tie (साफ नाल बाँधने का धागा/क्लैम्प)
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Clean cord stump (साफ नाल का अवशेष भाग)
प्रसव की तकनीक
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मूत्राशय भरा हो तो कैथेटर लगाना चाहिए।
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रोगी को संकुचन आने पर जोर लगाने (bearing down) के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
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जब भ्रूण का सिर लगभग 5 सेमी तक दिखाई देने लगे तो सिर को धीरे-धीरे झुकाकर (flexion) आगे लाया जाता है।
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यह कार्य बाएँ हाथ की तर्जनी और अंगूठे से ऑक्सिपुट को नीचे और पीछे दबाकर तथा दाएँ हाथ से पेरिनियम पर दबाव देकर किया जाता है।
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बार-बार यह प्रक्रिया संकुचनों के दौरान दोहराई जाती है जब तक कि subocciput symphysis pubis के नीचे न आ जाए।
सिर का जन्म (Crowning)
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जब भ्रूण का सिर अधिकतम फैलाव (biparietal diameter) से योनि द्वार पर बिना पीछे हटे दिखाई देता है, इसे “crowning of head” कहते हैं।
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यदि पेरिनियम फटने का खतरा हो, विशेषकर प्रथम प्रसव में, तो episiotomy (काटना) लिग्नोकेन (1%, 10 ml) से लोकल एनेस्थीसिया देने के बाद किया जाता है।
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सिर का जन्म धीरे-धीरे संकुचनों के बीच करवाना चाहिए।
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इससे भ्रूण का माथा, नाक, मुँह और ठुड्डी क्रमशः बाहर आ जाते हैं।
सिर बाहर आने के तुरंत बाद
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मुँह और गले में जमी श्लेष्मा और रक्त को स्टेराइल गॉज़ से साफ किया जाए या सक्शन मशीन से निकाला जाए।
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आँखों की सफाई स्टेराइल सूखी रुई से भीतर से बाहर की ओर की जाए।
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गर्दन को हाथ से टटोलकर देखा जाए कि नाल (cord) लिपटी हुई तो नहीं है।
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यदि ढीली है तो सिर/कंधे के ऊपर से निकाल दें।
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यदि कसी हुई है तो दो Kocher’s forceps लगाकर बीच से काट दें।
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कंधे और धड़ का प्रसव
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कंधों को निकालने में जल्दबाजी न करें।
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अगले संकुचन पर पहले anterior shoulder symphysis pubis के नीचे से निकलेगा।
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यदि कठिनाई हो तो सिर को धीरे-धीरे पीछे की ओर खींचकर anterior shoulder निकालें।
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फिर सिर को ऊपर की ओर खींचकर posterior shoulder बाहर निकाला जाता है।
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कंधे निकलने के बाद उँगलियाँ बगल के नीचे डालकर बच्चे के धड़ को धीरे-धीरे बाहर निकाला जाता है।
बच्चे की प्रारंभिक देखभाल
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बच्चा तुरंत एक ट्रे में रखा जाता है जिस पर साफ सूखा कपड़ा बिछा हो और बच्चे का सिर थोड़ा नीचे (15°) की ओर हो।
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ट्रे को गर्भाशय से नीचे रखना चाहिए ताकि गुरुत्वाकर्षण से अतिरिक्त रक्त प्लेसेंटा से शिशु में आ सके।
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श्वसन मार्ग (air passage) की सफाई सक्शन से की जाती है।
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जन्म के 1 मिनट बाद Apgar स्कोर दर्ज किया जाता है।
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नाल (cord) को 2–3 मिनट बाद या धड़कन बंद होने तक क्लैम्प करना चाहिए।
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इससे 80–100 ml अतिरिक्त रक्त शिशु तक पहुँचता है।
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नाल को दो Kocher’s forceps से पकड़कर बीच से काटा जाता है।
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दो क्लैम्प/लिगेचर 1 सेमी की दूरी पर लगाए जाते हैं, जिनमें से पहला नाभि से 2.5 सेमी दूर रखा जाता है।
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कटे सिरे को स्टेराइल गॉज़ से ढक दिया जाता है।
अंतिम कदम
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बच्चे में किसी भी जन्मजात विकृति की जाँच की जाती है।
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उसे सूखे और गर्म कपड़े में लपेटा जाता है।
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पहचान पट्टी (Identification tape) माँ और बच्चे दोनों की कलाई पर बाँधी जाती है।
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